जीवन में बहुत से रंग होते हैं. जिन्हें हम हर दिन की परिस्थितियों के आधार पर.. हमारी कल्पनाओं में भरते हैं.. मन के भावों को समेटते रहते हैं और जीवन आगे बढ़ता रहता है! जीवन की शुरूआत मै से होती है.. और सफलता को पाने केलिए मै को हम बनाना होता है..यानि समाज से जुडना, समाज की गतिशीलता निर्धारित करती है हमारा सांसारिक चक्र... लेकिन जब वही समाज कुछ विविध गतिविधियों से जीवन को प्रभावित करता है..तो मन में कुछ शब्द जन्म लेने लगते हैं.. और रचना करते हैं कुछ सरोकारों की जो संदेश बन जाते हैं..
आज ऐसा ही एक संदेश पारूल जी के व्यंग्य में छिपा है.. जो समाज की विडंबनाओं और अनैैतिकताओं का चित्रण है... कुवैत से आई श्रीमती पारूल चतुर्वेदी एक कवयित्री हैं जिनकी कविताएँ रिश्तों की सरसता और हर मन के भावों का चित्रण है.. जिसका प्रमाण आप स्वयं उन्हें सुनकर प्राप्त कर सकते हैं!
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Dr. Tripti Mathur,
Radio Dwarka,
India's First Online Community Radio.
Tuesday, August 23, 2016